उड़ीसा में पहली बार भाजपा सरकार ने नवीन का किला ध्वस्त, अप्रत्याशित सफलता विधानसभा और लोकसभा चुनावों में दोहरी जीत

उत्तर प्रदेश में अपेक्षित सफलता न मिलने के बावजूद, भाजपा के लिए सबसे बड़ी खुशी उड़ीसा में मिली है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के परिणामों ने भाजपा को यहां दोहरी खुशी दी है।

देर रात तक जारी चुनावी रुझानों में लोकसभा की 21 सीटों में से 19 सीटों पर भाजपा ने अप्रत्याशित रूप से मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। साथ ही, पहली बार उड़ीसा में अपने बलबूते विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा पार करने में भी भाजपा सफल रही है।

उड़ीसा की 147 सदस्यीय विधानसभा में, भाजपा ने 80 सीटों पर बढ़त हासिल करते हुए प्रदेश में सरकार बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा को सही साबित कर दिया है। उड़ीसा में सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 74 है, जबकि पिछले ढाई दशक से मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व में सत्ता में काबिज बीजू जनता दल (बीजद) इस बार 50 सीटों से कम पर सिमट गई है। नवीन पटनायक के 24 साल के शासनकाल को चुनौती देते हुए भाजपा ने प्रदेश में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभा के दौरान घोषणा की थी कि 4 जून को भाजपा को बहुमत मिलेगा और 10 जून को भाजपा की तरफ से किसी ओड़िया को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। नतीजों ने साबित कर दिया कि 2019 के विधानसभा चुनाव में 113 सीटें जीतने वाली बीजद इस बार बुरी तरह से हार गई है। प्रदेश में हासिये पर चल रही कांग्रेस भी पिछले चुनाव से कुछ सीटें ही बढ़ा पाई और तीसरे नंबर पर रही। कांग्रेस ने करीब 14 सीटों पर बढ़त हासिल की, जबकि अन्य दलों के खाते में चार सीटें गई हैं, जिसमें एक सीट वाम मोर्चा को मिली है।

इस चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन की बात नहीं बन पाई थी, लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान बीजद को ही हुआ। अल्पसंख्यकों के वोट बीजद से कटकर कांग्रेस और अन्य पार्टियों में चले गए। पीएम मोदी द्वारा उड़ीसा की अस्मिता की बात उठाने का भी असर दिखा। भाजपा ने नवीन पटनायक के बाद सबसे मजबूत माने जाने वाले वी. के. पांडियन के सत्ता में आने की संभावना को प्रमुखता से उठाया। साथ ही, नवीन पटनायक के स्वास्थ्य को लेकर भी जोर-शोर से प्रचार किया गया। पीएम मोदी ने अपनी सभाओं के दौरान कहा कि नवीन पटनायक अपने राज्य के जिला मुख्यालयों के नाम तक बिना कागज देखे नहीं बता सकते हैं, जिससे उनका शासन पर पकड़ कमजोर होने का संदेश दिया गया।

पहली बार भाजपा इतनी आक्रामकता के साथ उड़ीसा में चुनाव लड़ी है। इससे पूर्व, भाजपा का बीजद के साथ गठबंधन रहा है। नवीन पटनायक के सीएम बनने के बाद 2009 तक भाजपा और बीजद के बीच गठबंधन सरकार चली, लेकिन इसके बाद दोनों दल अलग हो गए।

इस चुनाव में भाजपा ने अपने बलबूते पर बहुमत हासिल कर उड़ीसा में सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है। यह भाजपा के लिए एक बड़ी जीत और उड़ीसा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव है।

 

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