बंगाल में महिलाओं और मुस्लिमों का तृणमूल कांग्रेस पर भरोसा!!!!

लोकसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि बंगाल की राजनीति में महिलाओं और मुस्लिमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

राज्य में प्रत्येक चुनाव के साथ महिला मतदाताओं की संख्या और उनकी भागीदारी बढ़ती जा रही है। 2021 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने मतदान के मामले में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया। उस समय 82.35% महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था जबकि पुरुषों का मतदान प्रतिशत 82.24% रहा था।

वर्तमान में बंगाल में कुल 7.58 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें 3.85 करोड़ पुरुष और 3.73 करोड़ महिलाएं हैं। 18 से 19 वर्ष आयु वर्ग की महिला मतदाताओं की संख्या 6.57 लाख हो गई है। इस बार 2.82 लाख नई महिलाएं मतदाता के रूप में जुड़ी हैं। बंगाल की कुल आबादी का 49% महिलाएं हैं और इस बड़े हिस्से ने खुलकर तृणमूल कांग्रेस पर अपना समर्थन जताया है।

बीएसएफ विवाद भाजपा का चुनावी मुद्दा बना:-

भाजपा ने चुनाव में बीएसएफ के मुद्दे को बड़ा बनाकर महिलाओं का समर्थन पाने की पूरी कोशिश की। बीएसएफ विवाद में प्रतिवाद का चेहरा बनकर उभरी रेखा पात्र को बसीरहाट संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी भी बनाया गया। दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस ने इस मुद्दे को सजाया हुआ करार देते हुए चुनावी मैदान में उतरी। नतीजों से स्पष्ट हुआ कि बीएसएफ मुद्दा चुनाव में कारगर साबित नहीं हुआ और इसका बसीरहाट समेत पूरे बंगाल में कोई असर नहीं दिखा। रेखा पात्र को हार का सामना करना पड़ा।

लक्ष्मी भंडार योजना का असर:-

महिलाओं का समर्थन पाने में ममता बनर्जी की लक्ष्मी भंडार योजना एक बड़ा कारण साबित हुई। इस योजना के तहत सामान्य वर्ग की महिलाओं को प्रतिमाह ₹1000 और एससी-एसटी वर्ग की महिलाओं को ₹1200 दिए जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद शुरू की गई इस योजना ने महिलाओं के बीच ममता बनर्जी की लोकप्रियता को बढ़ाया। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, इस भत्ते को बढ़ाकर सामान्य वर्ग के लिए ₹1200 कर दिया गया, जो ममता का मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ।

महिलाओं और मुस्लिमों का समर्थन हासिल करने में सफल तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल की राजनीति में अपनी मजबूती को एक बार फिर सिद्ध कर दिया है।

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