भाजपा की चुनावी जीत इस बार बहुमत से कुछ कदम पीछे रह गई, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा। भाजपा को 240 सीटें प्राप्त हुईं और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को कुल 291 सीटें मिलीं, जो बहुमत के लिए आवश्यक 272 सीटों से थोड़ा ही अधिक है।
वहीं, विपक्षी गठबंधन को 234 सीटें मिलीं, जिससे उन्हें काफी ताकत और हौसला मिला।
इस चुनाव में जनता ने पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा को बड़ी जीत देने के बाद इस बार चौंकाने वाला जनादेश दिया। भाजपा की उम्मीदें इस बार इतनी सधी हुई थीं कि वे बहुमत के लिए आवश्यक सीटों से कुछ पहले लाकर छोड़ दी गईं। भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए इस जीत का स्वाद पिछले दो चुनावों की बंपर जीत की तुलना में कड़वा रहा।
उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस का गठबंधन भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर गया। सपा ने 37 सीटें जीतकर राज्य में सबसे बड़ी पार्टी का स्थान प्राप्त किया, जबकि भाजपा 62 से घटकर 33 सीटों पर सिमट गई। मध्य प्रदेश में भाजपा ने 29 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को छिंदवाड़ा सीट से हाथ धोना पड़ा। गुजरात और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सिर्फ एक-एक सीट जीतने में सफल रही। दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन ने भाजपा को क्लीनशिप से नहीं रोका।
विपक्षी दलों ने इस चुनाव में प्रमुख मुद्दों को उठाकर भाजपा की राह में रोड अटकाने में सफलता हासिल की। जाति जनगणना का मुद्दा भले ही प्रमुखता से नहीं उभर पाया, लेकिन विपक्ष ने जातिगत राजनीति को भुनाने में सफल रहे। उत्तर प्रदेश में सपा, तमिलनाडु में डीएमके, और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा की उम्मीदों को झटका दिया।
उड़ीसा में बीजू जनता दल का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जबकि अन्य राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने राजग के लिए चुनौती खड़ी की। तमिलनाडु में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन सीटों की संख्या में इजाफा नहीं हो सका।
इन चुनाव परिणामों ने साफ संकेत दिए हैं कि विपक्षी दल महत्वपूर्ण मुद्दों पर जनता का समर्थन जुटाने में काफी हद तक सफल रहे हैं। 18वीं लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव ने भारतीय राजनीति में नए समीकरण और संभावनाओं को जन्म दिया है। अब देखना होगा कि आने वाले समय में ये परिणाम भारतीय राजनीति के भविष्य को किस दिशा में ले जाते हैं।