यह कैसी जिद अदालत के फैसले से सरकार को झटका!

कोलकाता उच्च न्यायालय ने राज्य में 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाण पत्तों को रद्द कर पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को करारा झटका दिया है,

मामले को शीर्ष अदालत में ले जाना उसका अधिकार है लेकिन मन अनुकूल फैसला न मिलने पर दीदी जो रवैया दिख रही हैं क्या या जायज है 8 वर्ष पुराने शिक्षक भर्ती घोटाले पर हाल ही में कड़ा फैसला सुनाने के बाद कोलकाता उच्च न्यायालय ने अब राज्य में 2010 के बाद जारी सभी अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी प्रमाण पत्तों को रद्द कर पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को एक और बड़ा झटका दिया है!

इस फैसले में अप्रैल से सितंबर 2010 तक ओबीसी के तहत मुसलमानों को 77 श्रेणियां में दिए गए आरक्षण को निरस्त कर दिया गया है उल्लेखनीय की 77 समुदाय में से 42 को 2010 में तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार द्वारा ओबीसी का दर्जा दिया गया था जिनमें से अदालत के अनुसार 41 मुस्लिम थे वहीं 2011 में सत्ता में आने वाली तृणमूल सरकार ने 35 समुदायों को विश्व का दर्जा दिया जिनमें से 34 मुस्लिम थे ध्यान देने वाली बात है!

पश्चिम बंगाल 17 फ़ीसदी ओबीसी आरक्षण प्रदान करता है जिसे दो भागों में विभाजित किया गया है ओबीसी अति पिछड़े को 10 पीस दी जिसमें शामिल 81 समुदायों में से 73 मुस्लिम है ओबीसी बी पिछड़े को 7 फ़ीसदी जिसमें शामिल 98 समुदाय में से 45 मुस्लिम है इन आंकड़ों से अदालत द्वारा जाते गए संदेह की समुदाय विशेष को राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति का साधन बनाया गया की पोस्ट तो होती है ही है!

इसके साथ या पश्चिम बंगाल की राजनीति की विडंबनाओ को भी दर्शाता है अब ममता बनर्जी बेशक या कह रहे हैं कि घर-घर सर्वेक्षण करने के बाद विधायक का मसौदा तैयार कर फिर इसे पारित किया गया था लेकिन अदालत का यह कहना गंभीर है कि किसी वर्ग को विश्व में शामिल करने की जो वर्तमान व्यवस्था है उसमें विधायक नीति का अभाव है जिसे बदल जाना चाहिए बावजूद इसके जिन व्यक्तियों ने पहले ही इन प्रमाण पत्रों का उपयोग करके रोजगार हासिल कर लिया है !

वह इस आदेश से प्रभावित नहीं होंगे ऐसा माना जा रहा है कि इस फैसले से 2010 के बाद जारी किए गए करीब 5 लाख प्रमाण पत्र प्राप्त करता जरूर प्रभावित होंगे लोकसभा के चुनाव के छठे और सातवें चरण में बंगाल के जिन 17 लोकसभा सीटों पर मतदान होगा उनमें मुस्लिम आबादी ज्यादा है जिनमें 12 पर टीएमसी तो पांच पर बीजेपी का कब्जा है ऐसे में या आदेश रणमूल कांग्रेस के लिए एक झटका है जो मुसलमान को एक प्रमुख वोट बैंक के रूप में गिनती है शिक्षक भर्ती घोटाले की तरह उच्च न्यायालय के इस फैसले को लेकर भी दीदी जरूरत पड़ने पर सीधी अदालत में जाने की बात कह रही हैं जिससे मैं किसी को भी हरजा नहीं होना चाहिए लेकिन मन अनुकूल फैसला न होने पर जिस तरह सार्वजनिक तौर पर फैसले की अवधारणा करती दिख रही हैं वह कहां तक जायज है!

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